दुनियाभर में बिहार का नाम रोशन करने वाली कत्थक क्वीन

एक बिहारी सब पर भारी

वो जिद्दी थी, पर कथक की दीवानी थी। वो तब मासूम थी लेकिन उसे कथक से लगाव हो गया था। तब उनकी उम्र मात्र ढाई साल की थी जब उन्हें कथक के गुरू साधना बोस के पास कथक नृत्य सिखने के लिए ले जाया गया था। लेकिन तब उन्हें ये मालूम नहीं था की उनकी यही जिद एक दिन उन्हें दुनियाभर में मशहूर कर देगी।

आज वो पद्मश्री शोभना नारायण है और दुनिया उन्हें उनके नाम से जानती है। कथक क्वीन शोभना नारायण का जन्म पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ। लेकिन मूलरूप से वो बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली है।

शोभनाजी के घर में मां और पिताजी के अलावा उनकी एक छोटी बहन रंजना नारायण थी। पिताजी सिविल सेवा में कार्यरत थे, तो मां सोशल वर्कर थी जबकि उनकी छोटी बहन रंजना नारायण आज सुप्रीम कोर्ट में लॉयर है। शोभनाजी जब मात्र ढाई साल की थी तब उनके पिताजी ने अपनी लाडली को कथक के गुरू साधना बोस के पास नृत्य की विद्या सिखाने के लिए ले गए। उस समय उनके पिताजी कोलकाता में ही कार्यरत थे।

कोलकाता में शोभनाजी ने एक साल तक अपने गुरू साधना बोस से कथक की बारीकियां सिखीं। लेकिन इसी बीच उनके पिताजी का तबादला मुंबई हो गया, जहां वो गुरू कुंदनलालजी से पांच सालों तक कथक नृत्य में खुद को तराशने की कोशिश की। लेकिन एक बार फिर उनके पिताजी का तबादला हुआ और वो 1962 मुंबई से दिल्ली आ गईं।

लेकिन कथक के प्रति उनकी दीवानगी कम नहीं हुई और यहां उन्होंने अपने नए गुरू बिरजू महाराजजी से कथक सिखने लगी और फिर दुनियाभर में मशहूर हो गई। शोभनाजी बीते दिनों को याद कर बताती है कि कैसे शुरूआती दिनों में बिरजू महाराज से कथक सिखने के दौरान किसी भी स्टेज शो में वो अपने गुरूजी से पहले अपना परफॉर्मेंस देती थी। 1972 में पहली बार कथक नृत्य के सिलसिले में शोभनाजी जर्मनी गई जहां उन्होंने 10वें बर्लिन यूथ फेस्टिबल में अपने कथक नृत्य से समा बांध दिया।

इसके बाद 1973 में पैरिस इंटरनैशनल म्यूजिक एंड डांस फेस्टिबल में शिरकत की और अपने मनमोहक नृत्य से दर्शकों को मोह लिया। जर्मनी और फ्रांस के बाद से कथक नृत्य के सिलसिले में शोभनाजी का विदेशी धरती पर जाने का जो कारवां शुरू हुआ वो आज भी जारी है। और अबतक शोभनाजी करीब 55 से ज्यादा देशों में कथक की प्रस्तुतियाँ कर चुकी हैं।

 

शोभनाजी कथक के अलावा दूसरे फॉर्म के नृत्य भी सिखे हैं लेकिन उनकी मानें तो कथक में जो बात है वो दूसरे फॉर्म के नृत्य में नहीं है। यही वजह थी कि कथक के फॉर्म को चुनकर और उसी में समर्पित हो कर उन्होनें एक नया मुकाम हासिल किया।

कथक के अलावा नृत्य के दूसरे फॉर्म को लेकर उनका नजरिया साफ है वो कहती है कि क्लासिकल डांस की अपनी एक रूचि है। उनका कहना है कि क्लासिकल, पॉप और फोक डांस हमेशा रहा है और आगे भी रहेगा।

कथक के प्रति शोभनाजी का समर्पण होते हुए भी यह उनकी पढ़ाई में कभी बाधा नहीं बनीं। हलांकि उनकी शुरूआती पढ़ाई- लिखाई देश के अलग- अलग शहरों में हुई, क्योंकि उनके पिताजी सिविल सेवा में कार्यरत थे जिसके कारण उनका तबादला समय-समय पर हो जाया करता था।

लेकिन 1962 में दिल्ली आने के बाद उनकी उच्च शिक्षा दिल्ली के मिरिंडा हाउस कॉलेज से हुई, जहां से उन्होंने ग्रेजुएशन की। जिसके बाद साल 2001 में पंजाब यूनिवर्सिटी से सोशल साइंस में एम.फील की पढ़ाई पूरी की।

लेकिन वो यहीं नहीं रूकी और साल 2008 में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से डिफेंस एंड एसट्रेटेजिक स्टडी में एम.फील की पढ़ाई पूरी की।

डॉ. शोभना नारायण कथक की मशहूर नृत्यांगना है जिसे दुनिया जानती है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वो एक सफल आईएएस ऑफिसर भी रहीं है।

शोभनाजी जितनी लगन के साथ कथक नृत्य में महारथ हासिल की है उतनी ही लगन और मेहनत से 1976 में सिविल सर्विसेज के लिए चुनी गईं।

एक साथ उन्होंने दो अलग- अलग चीजों में अपना करियर बनाने में सफलता हासिल की, ऐसा संभवत: विरले ही होता है। शोभना नारायणजी अपनी इस सफलता का पूरा श्रेय अपनी मां को देती है जिन्होंने हमेशा उनको आगे बढ़ने लिए प्रेरणा दी।

वो कहती हैं आज जो कुछ भी हैं वो अपनी मां की प्रेरणाओं की बदौलत हीं है। मशहूर कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोभना नारायण ने कथक में एक नया मुकाम बनाया जबकि वो एक सफल आईएएस ऑफिसर भी रही हैं।

लेकिन उनके जीवन में एक खूबसूरत लम्हा तब जुड़ा जब उन्होंने अपनी शादी ऑस्ट्रिया के राजदूत डॉ. हाबर्ट ट्रैक्सल से की, जो उस समय भारत में ऑस्ट्रिया के राजदूत थे।

आज उनके पति ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के कॉलेज में गेस्ट प्रोफेसर हैं। जबकि शोभनाजी का एक बेटा है जो उनकी स्ट्रेंथ है।

बेटा राजनीतिक विशेषज्ञ है जबकि वधू इनर्जी इक्नोमिस्ट एनालिस्ट है। खुशियों से भरा इनका परिवार है। शोभनाजी दुनियाभर में मशहूर है वो जितनी विनम्र हैं उतनी हीं सरल भी।

उनकी विनम्रता ये बताने के लिए काफी है कि वो कितनी महान हैं। वो कथक के नृत्य को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के कार्यक्रम करती हैं और नये प्रतिभाओं को तलाशने के साथ- साथ उनको कथक सिखाने में व्यस्त रहतीं हैं।

शोभनाजी कथक को बढ़ावा देने के लिए कई सारे कार्यक्रम भी करती रहती हैं। ललित अर्पण फेस्टिवल भी उनमें अहम है।

कथक की इस मशहूर नृत्यांगना को साहित्य में भी काफी दिलचस्पी है। वो मैथिलीचरण गुप्त, जायसी, बच्चनजी और महादेवी वर्मा की लिखी किताबें पढ़ना नहीं भूलती हैं। जबकि शोभनाजी खुद कथक पर अबतक 14 किताबें लिख चुकीं हैं।

जिनमें इंडियन क्लासिकल डांस, फ्लॉक डांस ट्रेडिशन ऑफ इंडिया, इंडियन थियेटर एंड डांस ट्रेडिशन आदि प्रमुख हैं। वैसे तो शोभनाजी के नाम तमाम अवार्ड है लेकिन 1992 उन्हें पद्मश्री के लिए चुना जाना एक नया अध्याय जुड़ने जैसा था। इस मशहूर नृत्यांगना को सलाम।

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