सूत्रों के मुताबिक बिहार को केंद्र सरकार विशेष राज्य का दर्जा दे सकती है. माना जा रहा है कि भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने पर विचार कर रही है.
बता दें बिहार सरकार पिछले कुछ महीनों से लागातार केंद्र सरकार पर हमला बोल रही है यह बोलकर की नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देंगे लेकिन 3 साल केंद्र सरकार ने पूरे कर लिये मगर वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ.
विशेष राज्य का दर्जा अभी तक पर्वतीय दुर्गम क्षेत्रों, सीमावर्ती, आदिवासी बहुल और गरीब राज्यों को ही मिलने का प्रावधान है. बिहार जैसे गरीब राज्यों के समावेशी विकास के लिए विशेष राज्य की मांग हाल के कुछ बरसों में काफी सुर्खियों में रही है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ये मांग जोर से उठती रही है. करीब 96 फ़ीसदी जोत सीमांत और छोटे किसानों की है. वहीं लगभग 32 फ़ीसदी परिवारों के पास ज़मीन नहीं है. बिहार के 38 ज़िलों में से लगभग 15 ज़िले बाढ़ क्षेत्र में आते हैं जहां हर साल कोसी, कमला, गंडक, महानंदा, पुनपुन, सोन, गंगा आदि नदियों की बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल, आधारभूत संरचना और फसलों का नुक़सान होता है.
कोसी नदी के बाढ़ के पानी से बिहार के कई ज़िलों में तबाही मचती रही है. विकास के बुनियादी ढांचे सड़क, बिजली, सिंचाई, स्कूल, अस्पताल, संचार आदि का वहां नितांत अभाव तो है ही, हर साल बाढ़ के बाद इनके पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त धन राशि की चुनौतियां भी बनी रहती हैं.
बिहार की बढ़ती विकास की दर सामान्यतः निर्माण, यातायात, संचार, होटल, रेस्तरां, रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाओं आदि में सर्वाधिक रही है जहां रोज़गार बढ़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है. खेती, उद्योग और जीविका के अन्य असंगठित क्षेत्रों में, जिन पर अधिक लोग निर्भर हैं, विकास की दरों में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है.
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सकारात्मक प्रयास अवश्य हुए हैं जिससे सामाजिक विकास के ख़र्चों में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी भी हुई है. लेकिन ये अब भी विकसित राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है. इस तरह अर्थव्यवस्था का आधार छोटा होने के कारण उनका सार्थक प्रभाव जीविका विस्तार और ग़रीबी निवारण पर दिखना अब भी बाकी है.