सावन में नवविवाहिता करती हैं मिथिलांचल की परंपरा से जुड़ी ये खास पूजा, बढ़ जाती है पति की उम्र

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बिहार में मिथिलांचल की परंपरा से जुड़ी है मधुश्रावणी पूजा का काफी ज्यादा खास महत्व है। इस साल सावन आने के बाद ये पूजा सोमवार 18 जुलाई से शुरू हो रही है। यह पूजा 13 दिनों तक लगातार चलती है। हर सुहागिन इस पूजा को विधि विधान से करती हैं, लेकिन यह विशेष रूप से नवविवाहिताओं के लिए है। विवाह के बाद पहले सावन में होने वाली इस पूजा का अलग ही महत्व है।

पूजा शुरु होने से पहले दिन नाग-नागिन व उनके पांच बच्चे भी (बिषहरा) को मिट्टी से गढ़ा जाता है। साथ ही हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा है। 13 दिनों तक हर सुबह नवविवाहिताएं फूल और शाम में पत्ते तोड़ती हैं। गढ़पुरा निवासी पंडित कुमोद झा बताते हैं कि इस त्यौहार के साथ प्रकृति का भी गहरा नाता है।

मिट्टी और हरियाली से जुड़े इस पूजा के पीछे आशय पति की लंबी आयु होती है। घरों में नवविवाहिताओं को ये त्योहार मनाने के लिए कहा जाता है। अगर किसी महिला का शादी के बाद पहला सावन है तो उस समय इस पूजा का और भी ज्यादा खास महत्व हो जाता है।

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