जब बिहारियों का उड़ा मजाक, एक बिहारी जिसने दिया ऐसा मुंहतोड़ जवाब

इतिहास

बिहार जब बंगाल का हिस्सा था उस वक्त इसका कोई स्वतंत्र अस्तितत्व नहीं था। बंगाली समाज प्रबुद्ध था। लेकिन वो खुद को बिहारियों से बेहतर समझता था।

यही कारण था कि बिहारियों को हिकारत की नजर से दखा जाता था। ऐसे में एक युवक ऐसा था जिसे अपने राज्य की ये स्थिति परेशान करती थी और आखिरकार उसने इसे स्वतंत्र बनाने का फैसला ले ही लिया।

ये युवक थे सच्चिदानंद सिन्हा। डॉ. सच्चिदानंद का जन्म 10 नवंबर, 1871 को बक्सर जिले के चौंगाईं प्रखण्ड के मुरार गांव में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में और मैट्रिक जिला स्कूल आरा में पूरी हुई।

18 साल की उम्र में 26 दिसम्बर 1889 को वे बैरिस्टर की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां से वापस आकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दस वर्ष तक प्रैक्टिस की। समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया। पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने बिहार को विभाजित करने की मुहिम छेड़ी।

आजादी से पहले वे बिहार के कानून मंत्री व पटना विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर भी रहे। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने अपने एक किताब में जिक्र किया है कि ‘ब्रिटेन में कुछ भारतीय मित्र साहित्यिक चर्चा के लिए ललकारते हुए मुझसे इस बात पर अड़ गए कि भूगोल की किसी भी मान्यता प्राप्त पुस्तक में ‘बिहार’ प्रांत को दिखाओ।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *